आंंबेडकर परिवार का राजनीतिक सफ़र

भारत के ‘आंबेडकर परिवार‘ का देश तथा महाराष्ट्र राज्य की राजनीति में दखल रहा है। जानिए आंंबेडकर परिवार का राजनीतिक सफ़र

 हा लेख मराठीत वाचा

Ambedkar family's political journey
आंंबेडकर परिवार का राजनीतिक सफ़र – Ambedkar family’s political journey

भारत के सबसे महान नेताओं में महात्मा गांधी व जवाहरलाल नेहरू के साथ डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का नाम लिया जाता है। भारतीय राजनीति पर सबसे ज्यादा दखल नेहरू-गांधी परिवार का रहा है। डॉ. आंबेडकर का भारतीय राजनीति में गहरा प्रभाव रहा हैं। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर से लेकर सुजात आंबेडकर तक, भारत के इस ‘आंबेडकर परिवार‘ का देश तथा महाराष्ट्र राज्य की राजनीति में दखल रहा है। आंबेडकर परिवार के सदस्यों का काम राजनीतिक कार्यकर्ता के बजाय सामाजिक क्षेत्र से शुरू हुआ। Ambedkar family’s political journey

 

आंबेडकर परिवार के राजनीतिक सफ़र के प्रमुख पड़ाव –

  • 1919 – 1920 : डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर सामाजिक क्षेत्र तथा राजनीति में सक्रिय हुए।
  • 1926 – 1937 : डॉ. बाबासाहब आंबेडकर बॉम्बे लेजिसलेटिव काउन्सिल के सदस्य (विधायक) के रूप में पद पर रहे।
  • 1930 – 1932 : डॉ. आंबेडकर ने लंदन में आयोजित तीनों गोलमेज सम्मेलनों में अछूतों को प्रतिनिधित्व किया। इससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। प्रसिद्ध अमेरिकी मैगज़ीन द टाइम ने बाबासाहब आंबेडकर को ‘भारत का अब्राहम लिंकन’ कहा।
  • 1936 : बाबासाहब ने ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ नामक राजनीतिक दल की स्थापना की।
  • 1937 : बॉम्बे के प्रांतीय विधानसभा चुनावों में ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ के 15 उम्मीदवारों में से 13 चुने गए। यह पार्टी के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि थी।
  • 1937 – 1942 : डॉ. आंबेडकर बॉम्बे लेजिसलेटिव असेंबली के सदस्य (विधायक) तथा विपक्ष नेता के पद पर रहे। काँग्रेस के बाद सबसे अधिक सीटें इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी को मिली थी।
  • 1942 : बाबासाहब आंबेडकर ने ‘शेड्युल्ड कास्ट्स फेडरेशन’ नामक नई राजनीतिक पार्टी का गठन किया।
  • 1942 – 1946 : डॉ. आंबेडकर ने भारत की केंद्र सरकार में श्रम मंत्री (लेबर मिनिस्टर) के रूप मे काम किया। श्रम मंत्री के अलावा वे ऊर्जा मंत्री और सिंचाई मंत्री के रूप में भी पद पर रहे।
  • 1946 – 1950 : डॉ. बाबासाहब आंबेडकर भारतीय संविधान सभा के सदस्य रहे। भारत का संविधान बनाने वाली संविधान सभा की कुल 22 कमिटियां थी, जिनमें से 9 समितियों में डॉ. आंबेडकर सदस्य थे तथा वे मसौदा कमिटी के अध्यक्ष थे। संविधान बनाने में सबसे अहम योगदान देने के कारण उन्हें ‘भारतीय संविधान का निर्माता’ कहा गया है। संविधान सभा ने भारत की संसद के रूप में भी काम किया, और बाबासाहब सांसद भी रहे।
  • 1947 – 1951 : डॉ. आंबेडकर आजाद भारत के कानून एवं न्याय मंत्री के पद पर रहे। नेहरू सरकार से मतभेदों के चलते, अक्टूबर 1951 में उन्होंने इस मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
  • 1952 : बाबासाहब आंबेडकर ने आजाद भारत का पहला भारतीय लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वह कांग्रेस उम्मीदवार से हार गए। उसी वर्ष, वह भारतीय संसद के ऊपरी सदन, राज्य सभा के सदस्य बने।
  • 1954 : डॉ. आंबेडकर ने भंडारा से लोकसभा उपचुनाव चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए।
  • 1952 – 1956 : बाबासाहब आंबेडकर भारतीय संसद के वरिष्ठ सदन ‘राज्यसभा के सदस्य’ पद पर रहे। बाबासाहब दूसरी बार सांसद बने। 30 सितंबर 1956 को बी.आर. आंबेडकर ने “अनुसूचित जाति महासंघ” को बर्खास्त करके “रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया” की स्थापना की घोषणा की थी। 6 दिसंबर 1956 को उनका महापरिनिर्वाण हुआ।

 

  • 1957 : 3 अक्टूबर को डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के बेटे यशवंत आंबेडकर, एन. शिवराज, पी.टी. बोराले, ए.जी. पवार, दत्ता कट्टी, दा.ता. रुपवते ने ‘रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया’ (RPI) का गठन किया। इस पार्टी की रूपरेखा स्वयं बाबासाहब ने तैयार की थी, लेकिन इसे गठित करने से पहले ही उनका निधन हो गया।
  • 1957 – 1962 : दूसरा लोकसभा चुनाव 1957 में हुआ, जिसमें 1957 में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के छह सदस्य दूसरी लोकसभा के लिए चुने गये। यह डॉ. आंबेडकर की पार्टी की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
  • 1960 – 1966 : बाबासाहेब के बेटे यशवंत आंबेडकर महाराष्ट्र विधान परिषद (विधायक) के सदस्य के पद पर रहे।
  • 1990 – 1996 : बाबासाहब के पोते और यशवंत के बेटे, बालासाहब तथा प्रकाश आंबेडकर राज्यसभा के सदस्य (सांसद) के पद पर रहे।
  • 1994 : प्रकाश आंबेडकर ने ‘भारिप बहुजन महासंघ’ नामक राजनीतिक पार्टी का गठन किया।
  • 1998 : बाबासाहब के सबसे छोटे पोते व प्रकाश आंबेडकर के भाई, आनंदराज आंबेडकर ने ‘रिपब्लिकन सेना’ नामक राजनीतिक दल की स्थापना की।
  • 1998 – 1999 : प्रकाश आंबेडकर लोकसभा के सदस्य (सांसद) बने।
  • 1999 – 2004 : प्रकाश आंबेडकर दूसरी बार लोकसभा के सदस्य के पद पर रहे। वे तीन बार सांसद रहे। (इसके बाद भी उन्होंने अगले सभी (2004, 2009, 2014, 2019) लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके।)
  • 2014 : बाबासाहब के भाई-मुकुंदराव के परपोते राजरत्न आंंबेडकर ने लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। प्रकाश आंबेडकर ने भी चुनाव लड़ा, लेकिन वे भी हार गये।
  • 2019 : प्रकाश आंबेडकर ने नई राजनीतिक पार्टी ‘वंचित बहुजन आघाडी’ (VBA) का गठन किया, तथा इसमें पुरानी भारिप बहुजन महासंघ पार्टी विलीनीकरण हुआ।
  • 2019 : प्रकाश आंबेडकर ने महाराष्ट्र लोकसभा चुनाव में VBA के टिकट पर अपने 47 उम्मीदवार उतारे थे और एक AIMIM उम्मीदवार का समर्थन किया था। क्योंकि तब वंचित बहुजन अघाड़ी और एआईएमआईएम गठबंधन में थे। एआईएमआईएम उम्मीदवार इम्तियाज जलील जीतने में कामयाब रहे, लेकिन VBA के सभी उम्मीदवार हार गए। वंचित बहुजन अघाड़ी को लोकसभा में कुल 7 फीसदी वोट मिले।
  • 2019 : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रकाश आंबेडकर ने अपनी वंचित बहुजन अघाड़ी पार्टी के टिकट पर 234 उम्मीदवार उतारे, लेकिन सभी हार गए। हालांकि वंचित बहुजन अघाड़ी को चुनाव में कुल 7 फीसदी वोट मिले। चुनाव से पहले ही वंचित बहुजन अघाड़ी और एआईएमआईएम का गठबंधन टूट गया।
  • 2023-24 : प्रकाश आंबेडकर 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के “इंडिया” गठबंधन में शामिल होने की कोशिश कर रहे हैं। अगर कांग्रेस और वंचित के बीच गठबंधन होता है तो महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सांसद INDIA से आ सकते हैं।

 

बाबासाहब के निधन के बाद, उनकी पत्नी सविता आंबेडकर को पीएम जवाहरलाल नेहरू, पीएम इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राज्यसभा में ले जाने का आग्रह किया। लेकिन कांग्रेस पार्टी के समर्थन से राज्यसभा की सदस्य बनना उन्हें पति के सिद्धांतों के साथ विश्वासघात लगा, इसलिए उन्होंने विनम्रतापूर्वक तीनों बार प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया।

 

आंंबेडकर परिवार का राजनीतिक सफ़र में आपने जाना की बाबासाहब विधायक, मंत्री और सांसद रहे। उनके बेटे यशवंत विधायक, तथा पोते प्रकाश आंबेडकर तीन बार सांसद रहे हैं।

बाबासाहेब के प्रपौत्र तथा प्रकाश आंबेडकर के बेटे सुजात आंबेडकर भी एक राजनितिक कार्यकर्ता है और VBA में काम करते है। 2019 में सुजात ने चुनाव प्रचार में काफी मदद की थी। विभिन्न माध्यमों से पूरे महाराष्ट्र और राज्य में फैली पिता बालासाहब की तमाम सभाओं और बैठकों पर सुजात नजर रख रहे थे।

बाबासाहब के चाचेरे परपोते राजरत्न आंंबेडकर राजनीति से थोड़ा दूर हैं और फिलहाल बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का काम कर रहे हैं। राजरत्न बौद्ध सोसायटी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।


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