संकल्प दिवस – 23 सितंबर : जब डॉ. आंबेडकर ने किया था ऐतिहासिक संकल्प

आज 23 सितंबर है यानिसंकल्प दिवस“। यह दिवस डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के जीवन से जुड़ा है, और इसी के कारण हजारों सालों का इतिहास बदल गया। आज इस लेख में हम संकल्प दिवस के इतिहास बारे में जानेंगे।

संकल्प दिवस – 23 September – Sankalp Diwas

संकल्प भूमि” एक ऐसी जगह है जहां बाबासाहब द्वारा एक महत्वपूर्ण संकल्प किया गया था और यह संकल्प आज ही के दिन 23 सितंबर को किया था। इसलिए यह दिवस “संकल्प दिवस” के रूप में मनाया जाता है।

बाबासाहब को अपमानित करके किराए पर लिए घर से बाहर निकाला गया था और उन्हें एक बगीचे में बैठ कर रात बितानी पड़ी। इस रात उन्होंने एक महत्वपूर्ण फैसला यानी संकल्प किया था। इस संकल्प के बारे में, इसके इतिहास के बारे हम सभी भारतीयों को जानना जरूरी भी है।

 

संकल्प दिवस :

जब बाबासाहब ने किया था एक ऐतिहासिक फैसला

हमारे देश के लोगों को अक्सर यह बात पता होती है कि दक्षिण अफ्रीका में कैसे महात्मा गांधी को उनके सामान के साथ एक ट्रेंन से बाहर धकेल दिया गया था और यह गलत काम अंग्रेजों ने गांधी को ‘ब्लैक‘ बताते हुए किया था।

ऐसा ही प्रसंग डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के जीवन में भी हुआ था, जिसके बारे में भारतीय समाज बहुत कम ही चर्चा करता है।

बाबासाहब को भी उनके सामान के साथ एक किराए पर लिए घर से बाहर धकेल दिया गया था और यह काम भारतीय हिंदुओं ने और पारसीओं ने उन्हें “अछूत” कहकर किया था।

गांधी ने भी ट्रेन का किराया दिया था और डॉ. आंबेडकर ने भी घर का किराया दिया था। लेकिन हमें अक्सर गांधी का ही किस्सा पढ़ने और सुनने में मिलता है!

मगर ऐसा क्यों? शायद इसलिए कि, गांधी के साथ जो दुर्व्यवहार हुआ, वह करने वाले लोग विदेशी थे और आंबेडकर के साथ जो बदसलूकी हुई वह करने वाले लोग स्वदेशी थे!

लोगों में एक वृत्ती होती है कि वह दूसरों की गलतियों का प्रचार करना पसंद करते हैं और खुद की (यानी स्वयं के समाज के लोगों की) गलतियों को छुपाना पसंद करते हैं।

बहरहाल हम बाबासाहब से जुड़े उस किस्से के बारे में जानते हैं, जिसने उन्हें एक ऐतिहासिक संकल्प लेने के लिए प्रेरित किया, जिस कारण देश के करोड़ों लोगों के जीवन में अमुलाग्र परिवर्तन हुआ। – संकल्प दिवस

संकल्प भूमि क्या है ?

संकल्प भूमि गुजरात राज्य के वडोदरा (बड़ौदा) में स्थित है।डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को समर्पित एक स्मारक और ऐतिहासिक स्थान है।

इस जगह पर हर साल लाखों लोग आते हैं। 23 सितंबर, 1917 को, डॉ. आंबेडकर ने अपने उत्पीड़ित अछूत समुदाय के लिए जातिप्रथा की जंजीरों से उखाड़ फेंकने के लिए अपना जीवन समर्पित करने का संकल्प किया था।

यह ऐतिहासिक फैसला उन्होंने सयाजीराव बगीचे में किया था, और 14 अप्रैल, 2006 को, उस जगह का नाम “संकल्प भूमि” कर दिया गया। गुजरात सरकार वहां डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का भव्य स्मारक बनवाएगी।

संकल्प भूमि गुजरात में एक प्रमुख बौद्ध और अनुसूचित जाति तीर्थ स्थल के रूप में विकसित हुई है जहां लोग बौद्ध धम्म की दीक्षा लेने आते हैं।

 

संकल्प दिवस क्या है?

सयाजीराव  महाराज के बड़ौदा संस्थान से प्राप्त छात्रवृत्ति के कारण 1913 में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर उच्च शिक्षा के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय जाने में सक्षम हुए थे।

दोनों के बीच यह समझौता था कि डॉ. आंबेडकर को छात्रवृत्ति के बदले 10 साल के लिए बड़ौदा में काम करना होगा। इस समझौते के तहत 25 वर्ष के युवा डॉ. भीमराव आंबेडकर सितंबर 1917 में अपने बड़े भाई के साथ बड़ौदा (वड़ोदरा) पहुंचे।

सयाजीराव ने उन्हें रेलवे स्टेशन से लाने का आदेश दिया था, लेकिन कोई भी  उनके ‘अछूत’ होने के कारन उन्हें लाने को तैयार नहीं था, इसलिए डॉ. बाबासाहब को खुद ही व्यवस्था करनी पड़ी। उन्हें अपने भोजन और आवास की व्यवस्था खुद करनी थी,

जिसके लिए वे एक जगह की तलाश में थे, लेकिन वड़ोदरा पहुंचने से पहले ही यह खबर फैल गई थी कि बॉम्बे से एक महार युवक नौकरी के लिए वडोदरा आ रहा है।

उनकी “अछूत” जाति के परिणामस्वरूप, कोई भी हिंदू या गैर-हिंदू उन्हें भोजन और रहने के लिए जगह या आश्रय देने को तैयार नहीं था। आखिरकार, उन्होंने अपना नाम बदलकर एक पारसी धर्मशाला में रहने के लिए एक जगह किराए पर ले ली।

Sankalp Bhoomi Badoda
दिल्ली के डॉ. आंबेडकर नेशनल मेमोरियल में ‘संकल्प भूमि’ की छवि, जिसमें 1917 में बड़ौदा के बाग में बैठे बाबासाहब को ऐतिहासिक संकल्प करते हुए दर्शाया गया है 

इसके बाद डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जिस जगह ठहरे हुए थे, उस जगह पर एक घटना घटी।

रात में गुस्साए पारसियों और हिंदुओं का एक समूह लाठी-डंडों के साथ होटल के बाहर जमा हो गया और डॉ. आंबेडकर को होटल से बाहर करने की मांग करने लगा।

उन्होंने बाबासाहब से पूछा कि तुम कौन हो? उस पर डॉ. आंबेडकर ने कहा, मैं हिंदू हूं। उनमें से एक ने कहा, “मैं जानता हूं कि तुम एक ‘अछूत’ हो, और तुमने हमारे गेस्ट हाउस को अपवित्र किया है!” तुम अब यहाँ से चलो! बाबासाहब ने कहा की, “रात का समय है, इसलिए मैं सुबह निकल जाऊंगा।”

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने उनसे केवल आठ घंटे और रियायतें देने को कहा। परन्तु उन्होंने डॉ. आंबेडकर की एक न सुनी और उनका सामान बाहर फेंक दिया।

आखिरकार, डॉ. आंबेडकर को रात में ही होटल छोड़ना पड़ा। तब किसी अन्य हिंदू या मुस्लिम ने उन्हें रहने के लिए जगह नहीं दी। उनके पास रात भर रहने के लिए कोई जगह नहीं थी।

इसलिए उन्होंने पास के बगीचे (अब सयाजीराव बगीचा) में बरगद के पेड़ के नीचे उदास रात बिताई। लेकिन यह रात डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण रातों में से एक थी।

उन्होंने सोचा कि जब सनातनी हिंदू मेरे जैसे विदेश से पढ़कर आए शिक्षित विद्वान के साथ ऐसा व्यवहार करते है, तो वे मेरे (अछूत) समाज के अशिक्षित और गरीब लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते होंगे?

फिर उन्होंने उस पेड़ के नीचे संकल्प लिया कि “मैं अपना पूरा जीवन इस वंचित और उपेक्षित समुदाय के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में लगाऊंगा, मैं उन्हें उनके मानवाधिकार दिलाऊँगा।”

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर आठ घंटे तक पार्क में रहे और अगली सुबह मुंबई के लिए रवाना हो गए। बाबासाहब का यह ऐतिहासिक संकल्प था।

जिस कारण बाबासाहब ने देश के करोड़ों लोगों को जाति प्रथा की दलदल से एवं अमानवीय व्यवहार से दूर किया। संकल्प दिवस

 

सयाजीराव गायकवाड़ चाहते थे कि डॉ. आंबेडकर बड़ौदा रियासत के वित्त मंत्री बने लेकिन अनुभव की कमी के कारण, डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने संस्थान के सचिव का पद स्वीकार कर लिया।

सचिवालय में अछूत बताकर डॉ. बी आर आंबेडकर का इतना अपमान किया गया कि उन्हें पीने के लिए पानी तक नहीं दिया गया। कर्मचारी दूर से ही डॉ. बाबासाहब आंबेडकर पर फाइलें फेंकते थे, उनके आने और जाने से पहले फर्श पर पड़ी चटाई हटाई जा रही थी, और इस तरह के अमानवीय व्यवहार के बाद भी, वह अपना काम और अपनी आंशिक शिक्षा पूरी करने के लिए संघर्ष करते रहे।

लेकिन डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को पुस्तकालय में पढ़ने के लिए तभी जाने दिया गया जब उनके खाली समय में कोई और मौजूद नहीं था। बड़ौदा में जातिवाद तेज बहुत अधिक था, इस कारण उन्हें इसी तरह का दुर्व्यवहार सहना पड़ा।

बाबासाहब ने अपने प्रति होने वाले अपमानजनक व्यवहार की शिकायत रियासत के महाराजा सयाजीराव गायकवाड से भी की थी, लेकिन उन्होंने कुछ ठोस कदम नहीं उठाए। डॉ. आंबेडकर को बड़ौदा छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

 

अछूत लोगों का उद्धार करने का संकल्प बाबासाहब से पहले भी कई महापुरुषों ने किया था, कई महात्माओं ने किया था, कई संतों ने किया था और अन्य भी बहुत सारे लोगों ने किया था; लेकिन कोई भी उसमें सफलता नहीं पा सका।

लेकिन समाज सुधारक  डॉ. बाबासाहब आंबेडकर बहुत हद तक इस संघर्ष में सफल हुए और उन्होंने अछूत लोगों को उनका अधिकार भी दिलाया।

बाबासाहब के परिचय में एक बात कही जाती है जो बिल्कुल सत्य भी है – “5000 साल का इतिहास केवल 40 वर्ष में बदलने वाले शख्स का नाम डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर हैं।

 

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर संकल्प भूमि स्मारक

14 अप्रैल 2006 को वड़ोदरा में सयाजीराव पार्क की साइट पर एक चौथरा (base) बनाया गया था जहां बाबासाहेब ने यह संकल्प बनाया था और इसका नाम बदलकर “संकल्प भूमि” कर दिया गया था।

हर साल देश भर से लाखों आंबेडकरवादी एक साथ आते हैं और डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के संकल्प को दोहराते हुए उनका अभिवादन करते हैं। गुजरात सरकार ने यहां डॉ. आंबेडकर का भव्य स्मारक बनाने का काम हाथ में लिया है। संकल्प दिवस


सन्दर्भ

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3 thoughts on “संकल्प दिवस – 23 सितंबर : जब डॉ. आंबेडकर ने किया था ऐतिहासिक संकल्प

  1. शानदार लेख इस लेख से हमें भी समाज के लिए कुछ करने का संकल्प लेना चाहिए।

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